समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन रूप से आकर्षित होना है। वे पुरुष, जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें पुरुष समलिंगी या गे (Gay) और जो महिलाएं, अन्य महिलाओं के प्रति आकर्षित होती हैं उन्हें भी गे कहा जा सकता है लेकिन आमतौर पर उन्हें महिला समलिंगी या लैस्बियन (Lesbians) कहा जाता है। जो लोग महिलाओं और पुरुषों दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें उभयलिंगी (Bisexual) कहा जाता है।
कुल मिलाकर लैस्बियन, गे, उभयलैंगिक और ट्रांसजेंडर (Transgender- किन्नर) लोगों को मिलाकर एलजीबीटी (LGBT) समुदाय बनता है। असल में यह समुदाय 1990 से चला आ रहा है और इस समुदाय में वो लोग आते हैं जो विषमलैंगिक नहीं हैं।
बहुत से लोग समलैंगिकता (Homosexuality) या बाईसेक्सुअलिटी (Bisexuality) को पाप मानते हैं तो कुछ इन दोनों को ही विकल्पों के रूप में देखते हैं जो किसी व्यक्ति की अपनी पसंद पर निर्भर करता है।
| लेकिन बहुत से वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि समलैंगिकता कोई विकल्प नहीं है। समलैंगिकता के कारण अभी स्पष्ट नहीं हुए हैं, लेकिन आनुवंशिकी और माँ के गर्भ में हार्मोनों के प्रभाव और वातावरण इसके कारक माने जाते हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी साबित किया है कि समलैंगिकता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि बहुत से पशुओं जैसे पेंग्विन, चिंपाॅज़ी और डॉल्फिनों में भी पाई जाती है।
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| बहुत से वैज्ञानिक और डॉक्टर इस बात पर सहमत हैं कि समलैंगिक व्यवहार को बदला नहीं जा सकता है। लेकिन अभी भी कुछ समुदाय ज़रूर हैं, जो समलैंगिकता के उपचार के प्रयासों में लगे हुए हैं। इसे रूपांतरण थेरेपी (Conversion therapy) कहा जाता है। इस प्रकार की चिकित्सा में बहुत से समलैंगिकों ने अपने आप को विषमलैंगिक बनाने का प्रयास किया है और वो ये दावा करते हैं कि उनमें बदलाव आया भी है, लेकिन इन बातों पर विश्वास नहीं किया जाता है। |
| मनोचिकित्सक समूहों द्वारा इन थेरेपी की निंदा की जाती है। वे इन उपचारों को मानव अधिकारों की निंदा के बराबर मानते हैं। |
| बहुत से लोगों का मानना है कि विषलैंगिकता के कारकों पर चर्चा किए बिना, केवल समलैंगिकता और उभयलैंगिकता के कारकों पर चर्चा करना भी गलत है अर्थात यदि किसी चीज़ की चर्चा अलग से की जा रही है तो उसे न चाहते हुए भी औरों से भिन्न बना दिया जाता है। |
| हालांकि विषमलैंगिकता, समलैंगिकता और उभयलैंगिकता सभी के कुछ कारण हैं और कुछ लोग यह मानते हैं कि केवल समलैंगिकता और उभयलैंगिकता पर चर्चा करना यह दर्शाता है कि इन प्रकार की लैंगिक प्रार्थमिकताओं वाले लोग आम लोगों से अलग हैं।
समलैंगिकता कुछ समय पहले भारत में प्रतिबंधित थी अर्थात समलिंगी होना भारत में अपराध के बराबर था। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समान लिंग के लोगों के साथ यौन संबंध बनाना असंवैधानिक था। 2 जुलाई 2009 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह सहमति जताई कि समलैंगिक वयस्कों के बीच सेक्स संबंध एक असंवैधानिक प्रावधान है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 11 दिसंबर 2013 को इस फैसले को खारिज कर दिया था। हालांकि, 6 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर पुनर्विचार करते हुए उनकी यौन प्राथमिकताओं की सुरक्षा पर सहमति जताई है। |
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